लघुकथा : स्नेहा की जीत
बर्तन माँजती हुई स्नेहा को जब पता चला कि उसकी सास उसे न केवल घूर रही है, बल्कि तंज कसते कुछ सख्त शब्द छोड़ रही है ; स्नेहा से नहीं रहा गया। हाथ धोकर तुरंत उठी। बोली- "माँ जी आपको हमेशा मेरी ही गलती नजर आती है क्या ? जब देखो गैरों की तरह हर बात पर मुझे ताने मारती रहती हो।" स्नेहा आग बबूला हो गयी। कह ही रही थी- "वैसे भी आपके बेटे का व्यवहार मेरे प्रति ठीक नहीं है; अब आप भी....!" कहते हुए स्नेहा अपने कमरे में चली गयी। स्नेहा अपनी किस्मत को कोसने लगी। उसकी सिर्फ इतनी ही गलती थी कि वो एक गरीब घर की बेटी थी, जो हमेशा सच्चाई का साथ देती थी। जब उसे कुछ गलत लगता तो बोल देती थी। कुछ देर बाद सुमित घर आया । तभी स्नेहा की सास श्यामा सुमित के सामने मगरमच्छ के आँसू बहाने लगी। सुमित से रहा नहीं गया। पूछा- "माँ आप रो क्यों रही हैं। क्या हुआ माँ, बताइये तो ?" श्यामा ने अपनी गलती पर पर्दा डालते हुए स्नेहा को ही दोषी ठहराया। सुमित की त्यौरी चढ़ गयी। बोला- "स्नेहा, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुमने मेरी माँ को रूला दिया।" जोर-जोर से आवाज