जजिया के साथ ही तीर्थयात्रा एवं गंगा स्नान के टैक्स का बोझ उठाने के बाद भी हिंदुओं ने न तो तीर्थाटन छोड़ा और न ही गंगा स्नान-डॉ कृष्णगोपाल


लखनऊ,सी.एम.एस. सभागार, विशालखण्ड, गोमती नगर में  राष्ट्रधर्म प्रकाशन लिमिटेड द्वारा प्रकाशित   'राष्ट्रधर्म' (मासिक)  पत्रिका  का 'राष्ट्रोन्मुख विकास' अंक का विमोचन समारोह मुख्य अतिथि: डॉ.कृष्ण गोपाल जी के कर कमलो सम्पन्न हुआ। समारोह  की अध्यक्षता प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने की। प्रभारी निदेशक सर्वेशचन्द्र द्विवेदी ने मुख्य अतिथि डॉ.कृष्ण गोपाल जी का स्वागत किया। स्वागत भाषण निदेशक मनोजकांत ने देते हुए मंचासीन अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया।


एक हजार वर्ष की पराधीनता काल में हमारी संस्कृति का क्षरण होता रहा, दबाब प्रभाव में भारतीय जब संस्कार भी खोने लगे ऐसी स्थिति में राष्ट्र की अखण्डता के मूल को जीवित रखने की आवश्यकता पड़ने लग गयी । देश की आजादी के समय में अंग्रेजों ने देश की संस्कृति को जिस प्रकार से खंडित करने का षड्यंत्र रचा था, उसे निष्‍प्रयोज्‍य करने के लिये राष्ट्रधर्म पत्रिका की 76 वर्ष पूर्व शुरुआत की गयी थी, जिसके अटल बिहारी वाजपेयी संपादक रहे । पीएम मोदी के 9 वर्षों के कार्यकाल में अब जब देश को एक नयी दिशा मिलने लगी है तो राज्यों में हो रहे विकास कार्यों और राष्ट्र में हो रहे समुचित विकास को जन-जन तक पहुंचाने के लिये राष्‍ट्रधर्म पत्रिका का ‘राष्‍ट्रोन्‍मुख विकास’ अंक का प्रकाशन भी किया गया है।

राष्ट्र राष्ट्रीयता बनाम पश्चिम के नेशन और हिंदी भाषा के महत्त्व को उल्लिखित करते हुए आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्णगोपाल ने लखनऊ के गोमतीनगर में राष्ट्रधर्म पत्रिका के विशेषांक विमोचन समारोह में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज देश में लोगों के बीच पुस्तकों की पठनीयता की समस्या दिख रही है। लोगों की पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है, तब भी राष्ट्रधर्म पत्रिका के माध्यम से विचारों का संयोजन लगातार किया जा रहा है। आवश्‍यकता है कि हर घर में हिंदी या स्थानीय भाषा के साहित्य का एक कोना होना चाहिये। उनका कहना था कि ऐसा न होने पर पठनीयता की आदत खत्म होते ही देश की संस्कृति भी प्रभावित हो जायेगी।


आरएसएस प्रचारक ने हिंदुत्व पर कहा कि हजार वर्षों की पराधीनता काल में देश की संस्कृति प्रभावित हुई। पहले इस्‍लाम ने और उसके बाद अंग्रेजों ने हमारे देश को आर्थ‍िक रूप से लूटने के साथ ही सांस्‍कृतिक रूप से विकृत करने का  प्रयास किया परन्तु हिंदुओं ने अपनी जीवनीशक्‍ति से खुद को और देश की संस्‍कृति को बचाये रखा। मुगल काल में तीर्थयात्राओं पर लगने वाले कर (टैक्‍स) के बारे में बताते हुये डॉ कृष्णगोपाल ने कहा कि जजिया के साथ ही तीर्थयात्रा एवं गंगा स्नान के टैक्स का बोझ उठाने के बाद भी हिंदुओं ने न तो तीर्थाटन छोड़ा और न ही गंगा स्नान जो मन और दृढ़ आस्था कारण हुआ । इस अवसर पर सम्पादक मण्डल के सदस्य डॉ. अमित कुशवाहा,डॉ. अमित उपाध्याय,डॉ. राजशरण शाही,डॉ. अनुज कुमार मिश्र मानवेन्द्र नाथ पंकज को सम्मानित किया गया।सम्पादक प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय, डॉ. पवनपुत्र बादल,रामजी भाई ने भी विचार व्यक्त किये।



 

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