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फिल्मों में अभूतपूर्व योगदान हेतु दिनेश सहगल सहित कई महान विभूतियों को मिला ‘‘स्व0 राजू श्रीवास्तव सम्मान’’

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फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष एवं कॉमेडी की दुनिया के बेताज बादशाह स्व0 राजू श्रीवास्तव के जन्म दिन के उपलक्ष पर अवधी विकास संस्थान के अध्यक्ष विनोद मिश्रा, एडवोकेट की ओर से आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि वन्य राज्य मंत्री अरूण सक्सेना एवं सुश्री शिखा श्रीवास्तव द्वारा उ0प्र0 में फिल्मों का माहौल बनाने एवं फिल्म निर्माताओं/निर्देशको को यथा सम्भव सहयोग प्रदान करने हेतु दिनेश कुमार सहगल को स्व0 राजू श्रीवास्तव स्मृति सम्मान-2023 से सम्मानित किया गया। साथ ही साथ उत्कृष्ट कार्य हेतु न्यायमूर्ति सुधीर सक्सेना, डॉ0 हरि ओम,आई0ए0एस0, डॉ अखिलेश मिश्रा, आई0ए0एस0, हरि प्रताप शाही, आई0ए0एस0, श्री पवन कुमार, आई0ए0एस0, अमित निगम, इनकम टैक्स कमिश्नर, सुश्री सरिता श्रीवास्तव, सचिव, राष्ट्रीय कथक संस्थान, डॉ0 अनिल रस्तोगी, अभिनेता एवं श्री विजय सिंह, समाज सेवक को ‘‘स्व0 राजू श्रीवास्तव स्मृति सम्मान-2023’’ से सम्मानित किया गया । समस्त विभूतियों का स्व0 राजू श्रीवास्तव से किसी न किसी तरह का जुड़ाव रहा है। प्रेक्षाग्रह में बैठे सभी अतिथियों की आंखे नम रहीं। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ0 अखिलेश म

बुंदेली के सुप्रसिद्ध लेखक, कवि और समालोचक स्व. रमेशदत्त दुबे ने ठेठ बुंदेलखंडी रागों और लय में उनका जीवन ढला था-प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी

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  सागर :  हिन्दी और बुंदेली के सुप्रसिद्ध लेखक, कवि और समालोचक रमेश दत्त दुबे की दसवीं पुण्यतिथि पर   श्यामलम्   द्वारा   रमेश दत्त दुबे   स्मृति कार्यक्रम के दसवें वार्षिक‌ आयोजन के अवसर पर मुख्य अतिथि देश के सुप्रसिद्ध कवि व   समालोचक डॉ उदयन वाजपेयी   भोपाल ने अपने अत्यधिक प्रभावी और बौद्धिक उद्बोधन में कहा कि रमेश दत्त दुबे जी ने कभी किसी चीज से समझौता नहीं किया। इस अर्थ में वे एक विशिष्ट रचनाकार बौद्धिक थे जो राजसत्ता और नागरिक समाज के बीच के फॉ॑क को रेखांकित कर राजसत्ता को प्रश्नांकित करते रहे। आज मैं यह जोर देकर कहना चाहता हूँ कि आप लेखक के साथ साथ उसके लेखन को भी याद करें। वही समाज महान होता है जो अपने लेखकों और नागरिक बौद्धिकों को याद रखता है। अगर आपको दुबे जी को याद करना है तो उनकी एक कहानी "गाँव" को पढ़िये और आपके अपने शहर के लेखक की रचनात्मक ऊँचाई देखिये। मैं दुबे जी के प्रति आपके आदर को देखते हुए कोशिश करूँगा कि अगले वर्ष से रज़ा फाउंडेशन की ओर से रमेश दत्त दुबे जी की स्मृति में बड़ी व्याख्यान माला आयोजित हो सके। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ हरीसिंह गौ

अमर सिंह राजपूत पुनः जिला अध्यक्ष निर्वाचित

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दमोह।   आज मध्य प्रदेश लेखक संघ इकाई दमोह का निर्वाचन अधिवेशन स्थानीय रामकुमार विद्यालय में हुआ, प्रांतीय समिति के निर्देशानुसार निर्वाचन अधिकारी डॉ. रघुनंदन चिले एवं सहायक निर्वाचन अधिकारी डॉ. प्रेमलता नीलम के द्वारा विधिवत निर्वाचन प्रक्रिया को संपादित किया गया। अधिवेशन का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं पं. रामकुमार तिवारी के मंत्रोच्चार से हुआ, इसके बाद जिला सचिव श्री पीएस परिहार ने संघ का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस निर्वाचन अधिवेशन में निष्पक्ष एवं पारदर्शिता पूर्ण प्रक्रिया को अपनाते हुए जिला अध्यक्ष श्री अमर सिंह राजपूत, वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री रामकुमार तिवारी एवं जिला कोषाध्यक्ष श्री बीएम दुबे निर्वाचित हुए। नवनिर्वाचित जिला अध्यक्ष श्री अमर सिंह राजपूत ने संघ संविधान में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष पद पर श्री ओजेंद्र तिवारी एवं जिला सचिव पद पर श्री पीएस परिहार को मनोनीत किया। सभी साहित्यकारों ने उक्त पदाधिकारियों को मालाऐं पहनाकर बधाई दी। निर्वाचन अधिवेशन के बाद डॉ. रघुनंदन चिले जी की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें उपस्थित

बुन्देली मातृभाषा की क्षमता मान कर अपनाये

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 आज भी कई भाषाओं में प्रचलित  बुन्देली मातृभाषा आज भी जीवंत समाज में प्रचलित हैं। बुन्देली भाषा किसी तालाब तक सीमित नहीं है। यह उस नदी के प्रवाह की तरह है जो समय के अनुसार उत्पन्न होने वाले नए ज्ञान, विचारों और सूचनाओं को अवशोषित करके आगे बढ़ती है। यह अन्य उन्नत भाषाओं के संपर्क में रहकर प्रगति कर सकता है। जो भाषा पवित्रता के अनुष्ठान में डूबी रहती है और उसके कारण आगे नहीं बढ़ पाती वह कैसे मृत अवस्था में दफन हो जाती है। ऐसा इतिहास में देखने को मिलता है. बुन्देली भाषा ने अपनी 15 शताब्दियों की यात्रा में इस बात का ध्यान रखा है। और इसीलिए   संत कवि तुलसीदास,कवि विहारी ने नए युग की चुनौतियों का सामना करते हुए नये नये बुन्देली शब्दों को पहचान दी। आंटी बाई अब हमारी माँ के घर का खरहर फिर से हमारी माँ को दे, बस इतनी सी हमारी माँग है। हमारे सामने सवाल हिन्दी अंग्रेजी के बहिष्कार का नहीं बल्कि बुन्देली की सुरक्षा और संरक्षण का है। भाषा का मतलब समझ का संग्रह नहीं होता है। भाषा एक महाशक्ति है जो समाज के वैचारिक और संचित ज्ञान को आगे बढ़ाती है और फलस्वरूप समाज के बदलते जीवन को अखंडता, आकार और सामग्री